-विन्देश्वर ठाकुर
# माए #
माए धरती छी
जे सिँचैए कोखिमे
प्रेम,उल्लास आ सृजना सेहो।
माए प्रकृति छी
जे रखैए अपनामे
सौम्य,प्रमोद आ रोदन सेहो।
माए कोसी छी
जे बहबैए अपनामे
निश्छल प्रेम आ कि
भ्यंकर प्रलय सेहो।
माए ममताके रुप छी
देवीक स्वरुप छी
मन्दिरमे गमकैत
अगरवती आ धूप छी।
धर्म ग्रन्थक सार थिक मैयाँ
उत्तम जिनगीक आधार थिक मैयाँ
मैयाँ विनु जग सुना-सुना
मनुखक लेल संस्कार थिक मैयाँ ।
अर्थात् एते बुझू-जे
माए थिक त हम छी,अहाँ छी
जीवन थिक,ई सृष्टि थिक।
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