विन्देश्वर ठाकुर
कतेको दिनधरि-
कविता नै लिखबाक पीड़ामे
थाकल रहए मोन
एकदिन अच्चानक
भेट भेल अहाँसंग आ पठेलौं अहाँ
अपन एकटा अनुपम तस्वीर
ओएह तस्वीरके उल्टबैत-पुल्टबैत
उपजल एकटा कविता आ
लिखागेल अइ तरहे ।।।
साच पुछैत छी त
हम जे सोचने रहियै बिम्ब
ओ भेटल अहाँक चानसन चेहरामें
हमर छानल प्रतीक
भेटल अहाँक मेघसन करिया केशमे
हमर कल्पना कएल विषय-
शृङ्गारक उच्चतम् विन्दुू
अछि अहाँक जिरो फिगरबला देह।
अलंकारमे पेलौं हम-
अहाँक गुलाबसन नरम ठोर
जाहिमे लिखल अछि दिव छवि
सुरुजक पहिल किरण सँ।
समग्रमे कही त
हमरा लेल सत्ते
साहित्यकें सार अहीँ छी
कविता लेखनक अधार अहीँ छी
एतेधरि जे-
हमर लिखल कविताक
बिम्ब,प्रतीक आ अंलकार सेहो अहीँ छी ।
तें त कहैत छी
हमरा लेल अहाँ एकटा
अदभूत आ आकर्षक कविता छी
जे अपन मधुरगर मुस्की सँ
जगमगादैत छै हमर हृदय आ
गम्का दैत छै हमर जिनगीक चौड़ा ।
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