
द सौर्य मिथिला
सुरुज ओहिना उगैछै
जहिना उगैत छल पहिने
हावा ओहिना चलैत छै
जेना चलै छ्ल पहिने
भोर,साँझ,राति
अनवरत ओहिना चलिरहल छै
जेना चलि रहल छल पहिने
बस बदलल छै लोकक बिचार
परिवर्तन भेल छैक लोकक आचार आ
फरक भऽ गेल छैक
लोकक सोचबाक मानसिकता।
कि एहि सँ पहिने
नहि एलै हैजा,मलेरिया आ इबोला ?
कि एकरा सँ आगु नै तंग केने रहै लोकके
एड्स,सिपलिस आ कि गोनेरिया ?
कुष्टरोग,चर्मरोग आ कि
कैन्सर सँ सेहो लोक त परेशाने रहैक ने ?
तहन कि भेलै ई कोरोने आबिगेलै ?
एलै अन्हड़ि आ
उरियादेलकै कतेको घर
एलै बाढि-पानि आ
सूडाह कु देलकै कतेकोके घर
एलै भुइकम्प आ
सखाप क देलकै
कतेको के घर-परिवार
कि कु सकलियै हमसब ?
तहिना एहि कोबिद-१९ मे सेहो
सतर्कता शिवाय
कैए कि सकब हमसब ?
प्रकृतिक आपदा छै भाइ
अकरा आगु लाचार होबहिटा पडत
जहन हुनक मर्जी चलैछै त
हमरासबहक बस नै चलैछै बाउ !
हमरा डर कनियो नै अछि कोरोना सँ
हां केवल चिन्ता अछि त
एतेधरि मात्र जे
प्राण छुटतै त
पुकारि सकब कि नै
माँ मैथिलीक नारा ?
साटि सकब कि नै
भालपर मिथिलाक माटि ??
विन्देश्वर ठाकुर
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